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Majestic Books, Hounslow, Vereinigtes Königreich
Verkäuferbewertung 4 von 5 Sternen
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Print on Demand. Bestandsnummer des Verkäufers 408133786
बहुत दिनों तक बंधन में रहने के बाद एकाएक उससे मुक्ति पाकर यद्यपि ऊर्मि अपने-आप में खो गई थी, अपने को भूल गई थी, फिर भी कभी-कभी एकाएक उसे अपने जीवन की कठिन ज़िम्मेदारी याद आ जाती। वह तो आज़ाद नहीं है, वह तो अपनी प्रतिज्ञा के साथ बँधी हुई है। उस प्रतिज्ञा ने उसे जिस एक विशेष व्यक्ति के साथ बाँध रखा है, उसी का अंकुश उसके ऊपर है, उसके दैनिक कर्तव्य के ठीक-ग़लत को उसी ने तय कर दिया है। उसके विचार पर सदा के लिए उसी का अधिकार हो चुका है, इस बात से भी ऊर्मि किसी प्रकार इंकार नहीं कर सकती। जब नीरद उपस्थित था तब स्वीकार करना सरल था, वह मन में बल का अनुभव करती थी। इस समय उसकी इच्छा बिल्कुल ही उल्टी हो गई है। उधर कर्तव्य-बुद्धि भी चोट करती है। कर्तव्य-बुद्धि की मनमानी से ही मन और ख़राब हो गया है। अपना अपराध क्षमा करना कठिन हो जाने से ही अपराध को ठौर मिल गया है। अपनी वेदना पर अफीम का लेप चढ़ाने, उसे भूलने के लिए ही शशांक के साथ हँसी-खेल और मन-बहलाव में सदा अपने को भुलाए रखने की कोशिश करती है। कहती है, "जब समय आएगा तब अपने-आप ही सब ठीक हो जाएगा। अभी जब तक छुट्टी है, उन सब बातों को रहने दो।" फिर किसी-किसी दिन एकाएक अपने दिमाग़ को झकझोर उठ खड़ी होती और कॉपी-किताब ट्रक से बाहर निकालकर उसमें मन लगाने की कोशिश करती। तब फिर शशांक की पारी आ जाती। पुस्तक आदि छीनकर वह बक्स में बंद कर देता और उसी बक्स पर स्वयं बैठ जाता। ऊर्मि कहती, "शशांक दा, यह बड़ा अन्याय है। मेरा समय बर्बाद न कीजिए।"" - इसी पुस्तक से
Titel: Ujdaa ghar tatha do bahnen
Verlag: Prabhakar Prakashan Private Limited
Erscheinungsdatum: 2025
Einband: Hardcover
Zustand: New
Anbieter: Revaluation Books, Exeter, Vereinigtes Königreich
Zustand: Brand New. In Stock. Artikel-Nr. x-9367938276
Anzahl: 2 verfügbar