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अगर मस्तिष्क ही आपका दुश्मन बन जाए तो? अगर आपका सबसे बुरा सपना ही आपकी जिंदगी बन जाए तो? आप इनसे कैसे लड़ेंगे? अंकिता एक मानसिक बीमारी से लड़ चुकी है, नारकीय हालात से गुजरी है और दो बार खुदकुशी करते-करते बची है। अब अंकिता मुंबई में है, जहाँ प्यार करनेवाले, उसका साथ निभानेवाले उसके माता-पिता हैं; और उसे सबकुछ कितना अच्छा लग रहा है। उसने दवाइयाँ लेनी भी बंद कर दी हैं। वह उस कॉलेज में है जो उसे पसंद है और जहाँ वह अपना पसंदीदा विषय 'क्रिएटिव राइटिंग' पढ़ रही है। उसने चुलबुली पारुल और खूबसूरत जानकी से दोस्ती कर ली है। आखिरकार, उसे एक नॉर्मल जिंदगी नसीब हुई है, जिसका एक-एक पल वह जी रही है। मगर इन सबके पीछे एक मुसीबत खड़ी हो रही है। कॉलेज की लाइब्रेरी में मिली एक किताब उसे आकर्षित कर लेती है, उसे अपने वश में कर लेती है और फिर एक भयानक अँधेरे में धकेल देती है, जिससे वह बुरी तरह टूट जाती है। तबाही तब उसे पूरी तरह अपनी चपेट में ले लेती है, जब उसका पुराना बॉयफ्रेंड भी लौट आता है। एक कलम और एक पत्रिका को हथियार बनाकर अंकिता पूरी ताकत से अपनी लड़ाई लड़ती है। पर क्या अपने मस्तिष्क में उठते खयालों से वह बच पाएगी? क्या दूसरी बार आए इस संकट से वह उबर पाएगी? आखिर उसकी जिंदगी में क्या होनेवाला है? रहस्य-रोमांच और मानवीय संवेदनाओं से भरपूर एक अत्यंत रोचक उपन्यास।
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